हमारे सामने मजेदार दृश्य है। एक तरफ ‘मॉडर्न’ प्रधानमंत्री हैं, जो केवल विकास की बात करते हैं जबकि दूसरी ओर उनके सहयोगी वोट हासिल करने के लिए मतदाताओं में ‘अन-मॉडर्न’ धार्मिक आशंकाओं को हवा देते हैं। आधुनिकता के गुणों में धर्म और राज्य का पृथक अस्तित्व भी एक गुण है, जहां धर्म आधुनिक व्यक्ति के निजी जीवन तक सीमित होता है। नरेंद्र मोदी के आधुनिक विकासवादी एजेंडे को पटरी से कोई चीज उतार सकती है तो वह है आरएसएस जैसे हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों की ‘अन-मॉडर्न’ मानसिकता, जो अब भी सार्वजनिक जीवन में हिंदुत्व एजेंडा भरने में लगा है। उत्तरप्रदेश विधानसभा के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को इससे होने वाले नुकसान का पहला संकेत मिला है, जिसमें पार्टी 11 सीटों में से 3 सीटें ही जीत सकी।
कई लोग मानते हैं कि भाजपा ने ‘लव जेहाद’ जैसी अजीब-सी बात फैलाकर आत्मघाती गोल कर लिया है। पार्टी के उत्तरप्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी इसे लेकर ज्यादा ही आगे बढ़ गए और जब तक नई दिल्ली का नेतृत्व उनकी खिंचाई करता, बहुत देर हो चुकी थी। ‘लव जेहाद’ और योगी आदित्यनाथ के अतिवादी बयानों ने राज्य का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर दिया और समाजवादी पार्टी ने मुस्लिमों का संरक्षक बनकर इस स्थिति का फायदा उठा लिया। भाजपा यह भूल गई कि उसने उत्तरप्रदेश की 80 में से 71 लोकसभा सीटें अच्छे शासन और आर्थिक विकास के वादे पर जीती थीं, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बल पर नहीं।
‘लव जेहाद’ यह जुमला भारतीय शब्दावली में 2009 में आया जब केरल व कर्नाटक में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण की खबरें आईं। हिंदू राष्ट्रवादियों ने दावा किया कि मुस्लिम पुरुष फुसलाकर हिंदू लड़कियों से विवाह कर उनका धर्म बदल रहे हैं। इसके पीछे भारत को मुस्लिम बहुसंख्या वाला देश बनाने का दीर्घावधि लक्ष्य है। तब दो मुस्लिम युवकों को इस आरोप में जेल में डाल दिया गया था कि उन्होंने यूनिवर्सिटी की दो गैर-मुस्लिम छात्राओं को िववाह का वादा कर धर्मांतरण के इरादे से फांस लिया। अदालत में दोनों युवतियों ने मुस्लिम युवाओं के खिलाफ गवाही दी। एक युवती ने बताया कि वह कॉलेज में वरिष्ठ छात्र के प्रेम में पड़कर उसके साथ भाग गई थी। उन्हें विवाह अपेक्षित था, लेकिन इसकी बजाय मुस्लिम केंद्र ले जाया गया, जहां उनका इस्लामी अतिवादी प्रचार से सामना हुआ। केरल हाईकोर्ट ने पुलिस से इन शिकायतों की जांच करने को कहा। पुलिस जांच का निष्कर्ष यह था कि कुछ असामाजिक पुरुषों द्वारा ऐसी घटनाएं अंजाम देने की इक्का-दुक्का घटनाएं हुई हैं, लेकिन धर्मांतरण के उद्देश्य से व्यापक साजिश के कोई सबूत नहीं मिले।
उत्तरप्रदेश में भी पुलिस को पिछले तीन माह में मिली ‘लव जेहाद’ की छह में से पांच रिपोर्टों में बलपूर्वक धर्मांतरण या इसके प्रयास के कोई सबूत नहीं मिले। प्रदेश के पुलिस प्रमुख एएल बनर्जी ने बताया ‘ज्यादातर मामलों में हिंदू युवती व मुस्लिम युवक के बीच प्रेम था और उन्होंने परिवार वालों की मर्जी के खिलाफ विवाह किया था। ये लव मैरिज के मामले थे लव जेहाद के नहीं।’ मुझे तो लव जेहाद कुछ हिंदू राष्ट्रवादियों की अति-सक्रिय और आत्म-विश्वासहीन कल्पना की उपज लगता है।
चूंकि मतदाता मूर्ख नहीं हैं, भाजपा को हाल के उपचुनाव में इसका खमियाजा भुगतना पड़ा। वास्तविक जोखिम तो यह है कि लव जेहाद जैसी मूर्खताएं मुस्लिमों को और अलगाव का अहसास कराएंगी और वे पाकिस्तान में बैठे अल कायदा के कमांडर अयमान अल-जवाहिरी और मध्यपूर्व के इस्लामिक स्टेट की अपीलों के शिकार बन सकते हैं। हमें तो संघ परिवार के काल्पनिक लव जेहाद की बजाय इन आतंकवादियों के लव-लैस जेहाद की ज्यादा चिंता करनी चाहिए।
लव जेहाद की फैंटेसी के पीछे पितृसत्तात्मक व्यवस्था का पुरातनपंथी विचार है, जिसमें महिलाओं को पुरुषों की संपत्ति समझा जाता है और संपत्ति की रक्षा करना पुरुषों का दायित्व। ज्यादातर परंपरागत धर्मों में यह विचार पाया जाता है, लेकिन 21वीं सदी में महिलाओं के बारे में ऐसा सोचना उनका अपमान है। लव जेहाद के पीछे महिलाओं के बारे में यह नकारात्मक विचार है कि वह जिम्मेदार नहीं है, उसकी अपनी कोई सोच नहीं होती और इसीलिए उसे पुरुषों के संरक्षण की जरूरत है। यदि हमें आधी आबादी की कोई परवाह है तो हमें इस पुरुषवादी मानसिकता पर प्रहार करना चाहिए, जो महिला को अधीनता में रखना चाहती है। धर्मशास्त्रों के जरिये इस मानसिकता को हजारों वर्षों में खाद-पानी मिला है। मनु कहते हैं कि स्वभाव से ही महिलाएं चंचल, बुरी और इच्छाओं के वशीभूत होती हैं। ‘स्त्रीधर्मपद्धति’ के लेखक त्र्यंबक जोर देकर कहते हैं कि महिलाएं वफादार नहीं होतीं, उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता और उन्हें लेकर सचेत रहना पड़ता है। किंतु शास्त्रों को इस बात का भी अहसास है कि महिला में मातृत्व के गुण हैं और परिवार बनाने व पुत्र होने के लिए वे आवश्यक हैं। इस प्रकार महिला के बेलगाम स्वभाव (स्त्रीभावना) और परिवार व समाज की आवश्यकताओं के बीच द्वंद्व है, इसलिए धर्मशास्त्रों ने ‘स्त्री-धर्म’ यानी परिवार व समाज के प्रति उसके कर्तव्य सिखाने और उनमें जिम्मेदारी की भावना विकसित करने का फैसला किया। यह सीख देने की कोशिश की कि अविवाहित महिला का कर्तव्य है पवित्र बने रहना और विवाहित महिला को पति के प्रति वफादार रहना चाहिए।
इस मानसिकता का नतीजा यह होता है कि जिस दिन बेटी युवावस्था में पहुंचती है, परंपरागत भारतीय परिवार नैतिक संत्रास में पहुंच जाता है। उस दिन के बाद पालक धीमी आवाज में योग्य लड़का खोजने के बारे में बातें करते हैं ताकि उसकी शादी कर दी जाए। अपनी जाति का लड़का हो तो बेहतर। यदि वे ब्राह्मण हैं तो वे उसे वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर में पूजा के लिए ले जाते हैं ताकि उसे योग्य वर मिल सके। लड़कियां पालकों को खुश रखने के लिए सोमवार का व्रत रखने लगती हैं, लेकिन आयु बढ़ने के साथ वह कॉलेज जाती है और वहां उसे आकर्षक युवा दिखाई देते हैं। रोमांस फलता-फूलता है और प्राय: प्रेम विवाह हो जाते हैं। युवती खुद ही युवक के साथ भाग जाने का निर्णय तक ले सकती है।
देश को खतरा बाहर से नहीं, भीतर से है। भारतीय मुस्लिम दुनिया का सबसे कम कट्टर मुस्लिम है। यह भारत के लोकतंत्र और हिंदू धर्म की बहुलता का असर है। भारत का इस्लाम भी उतना कट्टर नहीं है और यह गुणवत्ता में सूफी जैसा है। आरएसएस और संघ परिवार हिंदू धर्म का इस्लामीकरण करने का प्रयास कर रहे हैं और इसे कट्टर बना रहे हैं। वे भारत को तकलीफ में फंसे पाकिस्तान में बदलना चाहते हैं। लव जेहाद और इस जैसी पागलपनभरी बातों से मुस्लिम असुरक्षित महसूस करने लगेगा और अयमान अल-जवाहिरी और आईएसआईएस के बहकावे में उसके आने की आशंका बढ़ेगी। मोदी की जिम्मेदारी है कि वे इस भटकाव को रोकें ताकि वे चुने जाने के बाद किए अपने तीन वादे पूरे कर सकें- रोजगार पैदा करना, महंगाई पर लगाम लगाना और भ्रष्टाचार रोकना। लोगों ने भाजपा को विकास और सुशासन के लिए चुना है, लव जेहाद में पड़ने के लिए नहीं।