मेरे मित्र मुझे बताते हैं कि प्रसन्नता ‘भीतरी काम’ है और जीवन के प्रति मेरे रवैये से इसका संबंध है। वे मुझे जिंदगी की रफ्तार कम करने, योगा करने, ध्यान सीखने, खूब मुस्कराने और ईश्वर में भरोसा रखने को कहते हैं। ऐसी आध्यात्मिक बातचीत आमतौर पर मुझे गंभीर कर देती है। मैंने पाया है कि मेरी जिंदगी की खुशी दिन-प्रतिदिन की छोटी बातों में होती है- अपने काम में डूबे होना, किसी दोस्त के साथ ठहाके लगाना या अचानक सुंदरता से सामना हो जाना। खुशी तो यहीं, इसी क्षण है; किसी सुदूर अालौकिक जीवन में नहीं।
हम में से ज्यादातर लोग नाखूशी को निजी मामला समझते हैं, जो दुखी वैवाहिक जीवन, एहसान फरामोश बच्चों या प्रमोशन न मिलने जैसी बातों का नतीजा होती हैं- निश्चित ही हम नहीं चाहते कि सरकार इसमें कोई हस्तक्षेप करे। फिर भी सरकार मानव जीवन में खुशी को बढ़ावा देने में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है। कानून-व्यवस्था की अच्छी स्थिति मेरी खुशी में योगदान देती है। आजीविका का साधन और मकान होना, खुशी के ऐसे दो बड़े स्रोत हैं, जिन्हें सरकार आगे बढ़ा सकती है। वाजपेयी सरकार ने नीति में साधारण-सा बदलाव करके मकान को रेहन रखने की सुविधा बढ़ा दी। फिर उसने धीरे-धीरे इस पर कर रियायतें दस गुना बढ़ा दीं और इसके बाद तो मकान खरीदने के मामले में क्रांति आ गई।
आज भारत में दुश्वारी का सबसे बड़ा अकेला कोई कारण है तो वह है नौकरियां न होना। हाल ही में काम की तलाश में बुंदेलखंड से 18 लाख लोग दिल्ली आए हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था ने रुख तो पलटा है, लेकिन उसने इतनी तेजी नहीं पकड़ी कि जरूरत के मुताबिक नौकरियां पैदा हो सकें। सबसे ज्यादा जॉब आवास निर्माण में ही है। सड़क और उत्पादन (मैन्यूफैक्चरिंग) इतने यांत्रिक हो गए हैं कि वे ग्रामीण कृषि में घीसट रहे अकुशल या अर्द्धकुशल युवाओं को पर्याप्त रोजगार नहीं दे सकते। यदि ‘2022 तक सभी को आवास’ का प्रधानमंत्री का विज़न साकार हो जाए तो यह राष्ट्र में खुशी बढ़ाने में बहुत दूरगामी कदम होगा। इसमें नौकरियों के साथ मकानों का निर्माण भी शामिल है, जो खुशी के दो प्रमुख स्रोत हैं। सरकार को कुछ खर्च नहीं करना पड़ता, क्योंकि मकान निजी स्तर पर बनाए जाते हैं। सरकार को मकान बनाने में लगने वाली 51 फीसदी चीजों पर टैक्स मिलता है। सरकार ने हाल ही के बजट में इस विज़न को आगे बढ़ाने की दिशा में कुछ कदम उठाए, लेकिन ये पर्याप्त नहीं हैं। पहली बार मकान खरीदने वालों को लोन पर ब्याज में अधिक कटौती की पेशकश, रीयल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट को लाभांश वितरण पर लगने वाले टैक्स से छूट तथा किफायती मकानों के विकास पर बड़ा कर-प्रोत्साहन। सवाल है कि यदि मकानों के निर्माण का समाज को इतना फायदा है तो रियायतें सिर्फ किफायती मकानों तक ही सीमित क्यों? क्यों नहीं सारे होम लोन (जैसे 40 लाख रुपए तक) पर ब्याज को टैक्स फ्री क्यों न किया जाए?
रीयल एस्टेट क्षेत्र में हमारी ऊंची कीमतें बनावटी अभाव दर्शाती हैं, जो बहुत सारे खराब कानूनों, सांठगांठ और मंजूरी की अनिश्चित प्रक्रिया का नतीजा है। मकानों के निर्माण में तो साहसी सुधारों के बाद ही क्रांति आएगी। सबसे पहले हमें जमीन के रिकॉर्ड को डिजीटाइज कर टाइटल्स को पारदर्शी और सुरक्षित बनाना होगा। दूसरी बात, संपत्ति हस्तांतरण पर स्टैम्प ड्यूटी को कम करके वैश्विक स्तर पर लाने की जरूरत है। स्टैम्प ड्यूटी में कमी से ‘सफेद धन में लेन-देन’ को बढ़ावा मिलेगा। केलकर समिति ने स्टैम्प ड्यूटी को सामान व सेवा कर (जीएसटी) में शामिल करने की सिफारिश की थी, लेकिन राज्यों ने इससे इनकार कर दिया। तीसरी बात, मंजूरी देने की प्रक्रिया को सरल बनाएं। अचल संपत्ति संबंधी मौजूदा कानून मकान मालिक को तो संरक्षण देता है, लेकिन उस बिल्डर को नहीं देता, जिसके प्रोजेक्ट में मंजूरी की प्रक्रिया के दौरान देरी हो जाती है। इस प्रकार यह बिल्डर व मकान मालिक की जिंदगी में अनिश्चितता का सबसे बड़ा अकेला कारण है। चौथी बात, सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के पास बहुत सी बेशकीमती जमीन बेकार पड़ी है। सरकार को डेवलपर के साथ साझेदारी के आधार पर इससे पैसा कमाना चाहिए। जमीन चाहे सरकार के नाम ही रहे। पांचवीं बात, मकानों के निर्माण को ‘आधारभूत ढांचे’ का दर्जा दिया जाना चाहिए। छठा, विदेशी निवेश।
भवन निर्माण क्रांति में एक रोड़ा लोगों का यह रवैया भी है कि रीयल स्टेट डेवलपर और बिल्डर घटिया लोग होते हैं, जो जल्दी पैसा कमाने के चक्कर में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। इसी रवैये के कारण मीलों लंबे लालफीते बनाए गए हैं, जिसका नतीजा है अधिकारियों की ओर से कभी न खत्म होने वाली रिश्वत की मांग। पिछले माह पारित मकान मालिक को संरक्षण देने वाला रीयल एस्टेट कानून जरूरी था, लेकिन यह एकपक्षीय है। इसमें बिल्डर को लालची अधिकारियों के खिलाफ संरक्षण नहीं दिया गया है, जो कलम के एक प्रहार से प्रोजेक्ट को अटका सकते हैं। यही वजह है कि रीयल एस्टेट में मैं विदेशी निवेश का स्वागत करता हूं। इससे न सिर्फ हमारे नियमों को वैश्विक स्तर का बनाने में मदद मिलेगी और एक मजबूत रीयल एस्टेट क्षेत्र आकार लेगा। यदि गृह निर्माण क्रांति से खुशिया लानी है तो इसके लिए अच्छा शहरी नियोजन जरूरी होगा। दुर्भाग्य से भारत में सार्वजनिक चौक की परंपरा नहीं है। किंतु बच्चों को खेलने की जगह देने और महिलाओं को घरों से सुरक्षित निकलकर परिचितों से मिलने देने के लिए बहुत जरूरी हैं। पैदल चलने लायक गलियां, फुटपाथ, साइकिल चलाने की अलग लेन, बेंच वाले बगीचे, ग्रंथालय- ये सब सामाजिकता व सभ्यतागत अनुभव बढ़ाते हैं। जमीन के अभाव वाले देश में नियोजकों को समानांतर जगहें सार्वजनिक उपयोग के लिए सुरक्षित रखनी चाहिए, जबकि ऊपर की ओर का स्थान आवास के लिए रखना चाहिए। जमीन इतनी बेशकीमती है कि उसे मकानों से नहीं भरा जा सकता।
मध्यप्रदेश सरकार ने हाल ही में ‘हैपीनेस मिनिस्ट्री’ की घोषणा की है। यह विचलित करने वाला विचार है, क्योंकि आमतौर पर हम नहीं चाहते कि सरकार हमारी निजी जिंदगी में दखल दे। किंतु यदि यह मंत्रालय आवास निर्माण सुधारों को आगे बढ़ाए तो यह अच्छी बात होगी। इसे प्रदेश के वित्त मंत्री को बताना चाहिए कि आवास निर्माण की 51 फीसदी लागत टैक्स के रूप में सरकार को मिलेगी। इसे मुख्यमंत्री को प्रेरित करना चाहिए कि गृह-निर्माण लाखों श्रम आधारित स्टार्टअप कंपनियों को प्रोत्साहन देगा। इसके साथ नए आवासीय क्षेत्रों में लाखोें रिटेल जॉब आएंगे। फिर मकान निर्माण में सीधे जॉब तो मिलेंगे ही। बेशक, गृह निर्माण में क्रांति असल में नौकरियां पैदा करने में क्रांति साबित होगी!